भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पीठ कोरे पिता-4 / पीयूष दईया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:14, 28 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
अब आवाज़ से डरने लगा हूं
सांस में सिक्का उछालने जैसे
--स्वयं को बरजता
माथे में रुई धुनते हुए--
विदा का शब्द नहीं है।