भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीठ कोरे पिता-18 / पीयूष दईया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:28, 28 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

सब ख़त्म

में

कोई कब तक जी सकता है
कब तक

बग़ैर शब्दों के बोलना है एक भाषा में
जो मेरे पीछे पड़ी है
विफल

करती मुझे
बारम्बार
सुन लेगी जिसे

वह ख़ामोशी होगी
मैं नहीं पिता।