"कभी खेलो मत यही खेल है / पीयूष दईया" के अवतरणों में अंतर
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साँवरी साँबरी पढ़ते हुए
I belong to none…
…Every strong, beautiful, powerful
woman is a witch. ---इप्सिता रॉय चक्रवर्ती
आओ श्याम
आओ अंगसखा
कभी खेलो मत यही खेल है
वही वाताली
वही बीजरी
वही शर्वरी
आमुख आदिम
आज़ाद
जानती है वह
इस शक्ति से
चुड़ैल। असौम्य। मानुषी
सुखी सुन्दरी। अदेखा जगाती।
एक असाधारण बांकुरी।
पीछे का घेरा छोड़ आगे बढ़ती।
जादुई योगिनी
ऐसी कि बखानी नहीं जाती।
पुतली बांधती
अलख अपने लोक से
--वह
अनन्या
वषांगना पहली
स्त्रीवादी:
--सुनो--
कभी चौपाल से
कभी घर से
आ रही चीखें किनकी हैं?
सदियों के आरपार
हर बार
जिसे नंगी जलाया गया ज़िंदा
वह तुम हो
अकेली जन्म से
दूसरों के लिए कठपुतली एक
जगाओ ज़हर बदला लो
नाश कर दो हंसो
अथाह
की प्राणी
ऋतु समान अपना
चोला बदल अदाह्य।
उलट दो
और(त)
भी भीतर ही। सब कर डालो
तवारीख़ में वरना (अ)बला ही
रह जाओगी
अपनी गढ़ी जन्नत में अनवरत जीने में
कभी न मरने के लिए
आओ श्यामा
आओ सखी
नज़र करता हूँ अपने को--