भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक ही आशय में तिरोहित / यतीन्द्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यतीन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:06, 29 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

सत्य का मुख देखते हुए
अपनी सुई में डालता है जुलाहा धागा

संशय की महीन बुनावट से परे
जारी रखता है अपना काम
सिलाई तगाई और टाँकने की शर्तें

सूर्य की ओर ताकते हुए
उड़ती हैं अनगिन सतरंगी चिडि़याँ
बसेरे से दूर अनथक लगी रहतीं
दाने तिनके की आस में

देखने में ये दोनों दृश्य अलग-अलग हैं
मगर भाषा के मानसरोवर में
एक ही आशय में तिरोहित हुए जाते हैं.