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"ताना-भरनी / यतीन्द्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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23:07, 29 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

प्रेम का ताना
विश्वास की भरनी से

जीवन की बिछावन
तागी थी

न ताना कमजोर था
न ही भरनी थी ढीली

फिर भी बिछावन थी
जो फटती ही चली गयी
कम होता गया
दिन ब दिन उसका सूत

जैसे प्रेम का
विश्वास का दरक गया हो धागा

अब बिछावन है
जो पड़ी है धरती पर
फटेहाल अपना सिर उठाए

जीवन है
चल रहा इसी तरह
गँवा चुका विश्वास
थोड़ा सा प्रेम बचाए.