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− | उड़ते हुए रज-कण | + | उड़ते हुए रज-कण घनेरे । |
पर न अब तक मिट सके हैं, | पर न अब तक मिट सके हैं, | ||
− | वायु में पदचिह्न | + | वायु में पदचिह्न मेरे । |
− | जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा! | + | जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा ! |
− | राह हारी मैं न हारा! | + | राह हारी मैं न हारा ! |
स्वप्न मग्ना रात्रि सोई, | स्वप्न मग्ना रात्रि सोई, | ||
दिवस संध्या के किनारे | दिवस संध्या के किनारे | ||
− | थक गए वन-विहग, मृगतरु | + | थक गए वन-विहग, मृगतरु — |
− | थके सूरज-चाँद- | + | थके सूरज-चाँद-तारे । |
− | पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव ध्येय | + | पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव-ध्येय तारा । |
− | राह हारी मैं न हारा! | + | राह हारी मैं न हारा ! |
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10:57, 30 अगस्त 2014 का अवतरण
राह हारी मैं न हारा !
थक गए पथ धूल के —
उड़ते हुए रज-कण घनेरे ।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिह्न मेरे ।
जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा !
राह हारी मैं न हारा !
स्वप्न मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे
थक गए वन-विहग, मृगतरु —
थके सूरज-चाँद-तारे ।
पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव-ध्येय तारा ।
राह हारी मैं न हारा !