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"रंगों की आहट / आशुतोष दुबे" के अवतरणों में अंतर
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09:35, 1 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
जब रंगों की आहट सुनाई दे,
खोलना होता है दरवाज़ा
जगह देनी पड़ती है
उन्हें खिलने के लिए अपने भीतर
वरना वे गुज़र जाते हैं चुपचाप
बिना कोई दस्तक दिए
और फिर हम उन्हें ढूँढते रहते हैं