भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उन क्षणों में / नीलोत्पल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:40, 1 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

समुद्र ख़ाली था
जाल हटा लिए गए
लहरें किनारों पर रेत में सुस्ताती रहीं
सारी मछलियां उड़ गईं आसमान की ओर
तारों में चमक बरकरार थी

घोंघे और आक्टोपस
पृथ्वी का एंटीना थे
एक चुप जिसने समुद्र को घेर लिया

आवाज़ें रिक्त, समुद्र ख़ामोश

कुछ इस तरह जीवन को जाना

समुद्र और जीवन से ज़्यादा मौन
तुममें खो जाने में था

उन क्षणों में था
जब तुम्हें छू रहा था

आह, समय ईथर है
तुम्हारे बंद होठों की तरह
सबसे चुप और थरथराता