भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुछ झूठी कविताएं-3 / प्रियदर्शन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रियदर्शन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:04, 2 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
अक्सर बहुत ज़ोर से सच बोलने का दावा करने वाले
भूल जाते हैं कि सच क्या है
सच की दिक्कत यह है कि वह आसानी से समझ में नहीं आता
ज़िंदगी सच है या मौत?
अंधेरा सच है या रोशनी?
अगर दोनों सच हैं तो फिर दोनों में फ़र्क क्या है?
सच सच है या झूठ?
झूठ भी तो हो सकता है किसी का सच?
और ज़िंदगी के सबसे बड़े सच
सबसे नायाब झूठों की मदद से ही तो खुलते हैं।
पूरा का पूरा रचनात्मक साहित्य अंततः कुशल ढंग से बोला गया झूठ ही तो है
जो न होता तो ज़िंदगी के सच हमारी समझ में कैसे आते?
कायदे से सच को झूठ का आभारी होना चाहिए
झूठ है इसलिए सच का मोल है।