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मरने से क्या डरना / काका हाथरसी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=काका हाथरसी|अनुवादक=|संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी}}{{KKCatKavita}}<poem>नियम प्रकृति का अटल, मिटे न भाग्य लकीर । लकीर।आया है सो जाएगा राजा रंक फ़कीर ॥फ़कीर॥राजा रंक फ़कीर चलाओ जीवन नैय्या । नैय्या।मरना तो निश्चित है फिर क्या डरना भैय्या ॥भैय्या॥रोओ पीटो, किंतु मौत को रहम न आए । आए।नहीं जाय, यमदूत ज़बरदस्ती ले जाए ॥ जाए॥जो सच्चा इंसान है उसे देखिये आप | आप।मरते दम तक वह कभी करे न पश्चाताप ||पश्चाताप॥करे न पश्चाताप, ग़रीबी सहन करेगा | करेगा।लेकिन अपने सत्यधर्म से नहीं हटेगा ||हटेगा॥अंत समय में ऐसा संत मोक्ष पद पाए | पाए।सत्यम शिवम सुन्दरम में वह लय हो जाए || जाए॥जीवन में और मौत में पल भर का है फ़र्क |फ़र्क।हार गए सब ज्योतिषी फेल हो गए तर्क || तर्क॥फेल हो गए तर्क, उम्र लम्बी बतलाई |बतलाई।हार्ट फेल हो गया दवा कुछ काम न आई ||आई॥जीवन और मौत में इतना फ़र्क जानिए |जानिए।साँस चले जीवन, रुक जाए मौत मानिए ||मानिए॥</poem>
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