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"हम क्या करें / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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Kumar mukul (चर्चा | योगदान) (कि पागल प्रिय हैं हमें और बुद्धिमानों को हम सर नवाते हैं) |
(कोई अंतर नहीं)
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21:24, 29 सितम्बर 2014 का अवतरण
परंपरा की लीद संभाले
जो धंसे जा रहे और खुश हैं वो मूर्ख हैं
यह मूर्खता सहन नहीं कर पा रहे जो
पागल हैं वो
मूर्खें और पागलों से अटा जो परिदृश्य है
वह इतिहास है और बुद्धिमान
मूर्खें और पागलों की टांगों के मध्य से
भाग रहे हैं भविष्य को
हम क्या करें कि पागल प्रिय हैं हमें
और बुद्धिमानों को हम सर नवाते हैं ।
1997