भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक तिनका हम / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:40, 30 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
एक तिनका हम
हमारा क्या वज़न
हम पराश्रित
वायु के
चंद पल हैं आयु के
एक पल अपना ज़मीं है
दूसरा पल है गगन
ईंट हम
इस नीड़ के
ईंट हम उस नीड़ के
पंछियों से हर दफ़ा
होता गया अपना चयन
ग़ौर से
देखो हमें
रँग वही हम पर जमे
वो हमी थे, जब हरे थे
बीज का हम कवच बन
हम हुए
जो बेदख़ल
घाव से छप्पर विकल
आज भी बरसात में
टपकें हमारे ये नयन
साध थी
उठ राह से
हम जुड़ें परिवार से
आज रोटी सेंक श्रम की
ज़िंदगी कर दी हवन