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"रंगो की बोली / शशि पुरवार" के अवतरणों में अंतर
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14:37, 15 नवम्बर 2014 का अवतरण
रंगों की सौगात ले,
आई है होली
हर डाली पर खिल उठे
शोख टेसू लाल
प्रेम पुरवा से हुए
सुर्ख-सुर्ख गाल
मैना से तोता करे
प्रेम की बोली.
झूमते हर बाग में
इंद्र्धनुषी फूल
रँग बसंती की उडी
आसमाँ तक धूल
घूमती मस्तानों की
हर गली टोली
बिखरी निर्जन वन में भी
रंगो की घटा
हरिक दिल में बस गई
फागुनी छटा
दूर है रँग भेद से
रंगों की बोली .
रंगों की सौगात ले,
आई है होली....!