भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एहतराम इस्लाम / परिचय

7,390 bytes added, 11:56, 29 नवम्बर 2014
'''[[{{KKRachnakaarParichay|रचनाकार=एहतराम इस्लाम]]''' }} <poem>हिन्दी गजल में एहतराम इस्लाम का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। एहतराम इस्लाम का कद दुष्यन्त के समकक्ष है। इलाहाबाद गंगा जुमना सरस्वती के संगम के लिए ही नहीं वरन गंगा- जमुनी तहजीब के लिए भी जाना जाता है। उसी तहजीब के नुमाइन्दे हैं कवि / शायर एहतराम इस्लाम जो वर्तमान में इलाहाबाद प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष भी हैं जिसके संस्थापकों में सज्जाद जहीर और मुंशी प्रेमचन्द जैसे नामचीन रचनाकार रहे हैं। 5 जनवरी 1949 को मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में जन्मे एहतराम इस्लाम ने अपना कर्मक्षेत्र चुना प्रयाग को। एहतराम इस्लाम अब महालेखाकार कार्यालय के वरिष्ठ लेखा परीक्षक पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वर्ष 1965 से हिन्दी-उर्दू-अंग्रेजी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में एहतराम इस्लाम की रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। 'है तो है' इनका सुप्रसिद्ध गजल संग्रह है जिसे हिन्दुस्तानी एकेडेमी इलाहाबाद ने वर्ष 1993 में प्रकाशित किया है। एहतराम इस्लाम को उर्दू वाले अपना शायर और हिन्दी वाले अपना कवि मानते हैं। क्रांतिकारी विचारों वाले कवि एहतराम इस्लाम एजी आफिस यूनियन में कई बार साहित्य मंत्री भी रह चुके हैं ।
कृतियाँ : [[है तो है / एहतराम इस्लाम]] (ग़ज़ल संग्रह)
दूरभाष : 09839814279
 जन्म स्थान मिर्ज़ापुरएहतराम इस्लाम एक ऐसा नाम है जो गज़ल की भाषा को मिली जुली जमीन पर उतारकर असाधारण परितोष का अनुभव करता है |गज़ल नयी अभिव्यक्ति नयी सम्वेदना और नई कल्पनाओं से संवलित होकर एहतराम इस्लाम की रचनात्मकता का आईना बनकर आती है , [[उत्तर प्रदेश]] जिसमे आप अपनी सही तस्वीर देख सकते हैं |नये युग की चेतना नई भंगिमाओं में कितने सार्थक रूप ग्रहण करती है , भारत  कृतियाँ : [[यह उनकी गज़लों में देखा जा सकता है तो |हफीज का यह शेर उनकी गज़लों के संदर्भ में मुझे खास तौर से याद आ रहा है -हफीज अपनी बोली मोहब्बत की बोली / एहतराम इस्लाम]न हिन्दी न उर्दू न हिन्दोस्तानी |मैंने कई बार उनके इस शेर को सार्थक रूप से उद्धृत किया है ,क्योंकि कविता के संदर्भ में उनका दृष्टिकोण पर्याप्त प्रेरक लगा -नारों की नहूसत से कविता को बचा रखे /कविता को अगर कोई हथियार समझता है| '''स्मृति शेष डॉ० जगदीश गुप्त''' [पूर्व विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ] (ग़ज़ल संग्रह)
देश विदेश हिन्दी गज़लों ने इधर जो प्रखर तेवर अपनाये हैं उनमें एहतराम इस्लाम का महत्वपूर्ण योगदान है |गज़ल यों भी अपनी मौलिकता से अपना स्थान बना लेती है ,किन्तु हिन्दी गज़लों के माध्यम से उसका जो स्वरूप हमारे सामने आया है वह इस बात का प्रतीक है कि इसने यहाँ भी एक नई विधा के रूप में ग़ज़ल पाठ अपने आप को मनवा लिया है |कविवर निराला ने इसे महसूस कर लिया था तथा दुष्यन्त कुमार ने इसे प्रतिमान प्रदान किया था |हर्ष है कि एहतराम इस्लाम ने हिन्दी गज़लों को नई अर्थवत्ता के साथ नई चेतना और सामाजिक संवेदना भी प्रदान की है ,जिससे गज़ल की आत्मा स्पंदित हो जाती है |यही स्पंदन एहतराम इस्लाम की गज़लों का अनूठापन है | '''प्रोफेसर फजले इमाम''' [पूर्व विभागाध्यक्ष उर्दू इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ]
दूरभाष 09839814279गज़ल के शिल्प में समकालीन कविता का स्वर मुखर करने वाले कवि एहतराम इस्लाम अपना कथ्य भीड़ भरे चौराहों से लेकर आते हैं ,जहां आम आदमी जिन्दगी की जद्दोजहद और रोजमर्रा के संघर्ष में हर क्षण मुब्तिला होता है |जिजीविषा एक लड़ते हुए आदमी का भावबोध और समय और समाज के प्रति एक सकारात्मक व् धनात्मक सोच ही उनकी गज़लों का सच है |शायद इसीलिए दुष्यंतकुमार के गज़ल संग्रह साये में धूप के बाद अगर किसी दूसरे गज़ल संग्रह को अपार लोकप्रियता मिली है तो वह है एहतराम इस्लाम का गज़ल संग्रह है तो है। [[यश मालवीय]] </poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits