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{{KKRachna
|रचनाकार=किशोर काबरा
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ज़िंदगी की राह चलते थक गया हूँ,
साँस को कुछ मौत का विश्राम दे दूँ।
कुछ चिता से लकड़ियाँ मैं खींच लूँगा।
ज़िंदगी में मिल न पाई दो गज़ी भी,
आज कुछ लज्जा-वसन से तन ढँकूँगा।ढकूँगा।
तुम ज़रा-सा वक्त का शीशा दिखाना,
हडि्डयों को कुछ सुनहरा नाम दे दूँ।
तुम ज़रा गंगाजली का मुँह झुकाना,
मैं सुबह के हाथ अपनी शाम दे दूँ।
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