भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझे लगता है / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=सबका अपना आकाश / त्रिलोचन }} मुझे लगता ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
05:51, 6 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
मुझे लगता है कोई बुलाता है
मैं क्या करुँ
साँझ पड़ते ही मन में प्रतीक्षा सी
आ जाती है
कोई आएगा कोई आएगा
पर आती है
सुनसान अँधेरी रात
तिमिर छा जाता है
बैठे बैठे उदासी जी की
कहाँ खो जाती है
मेरे मन की मलिनता हँसी
की लहर धो जाती है
फिर लगता है
अब आया सलोना
प्रभात जगत जग जाता है
(रचना-काल - 23-7-56)