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"काश! इक बार मिल सकूँ उससे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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16:21, 20 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

काश! इक बार मिल सकूँ उससे
अपनी पहली ग़ज़ल सुनूँ उससे

कुछ तो होगा सबब जुदाई का
पूछ कर आज क्या करूँ उससे

जब वो बाहों में मेरी आ जाए
इक सबक प्यार का पढ़ूँ उससे

जिसके एहसान में दबा हूँ मैं
कहिए, कैसे भला लडूँ उससे

कट के आयी पतंग कहती है
है अनाड़ी तो क्यों उडूँ उससे

जो नहीं ऐतिबार के क़ाबिल
क्यों न मैं दूर ही रहूँ उससे

फ़ैसला मैंने कर लिया है 'रक़ीब'
कुछ न पूछूँ न कुछ कहूँ उससे