भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नश्‍शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग़ालिब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
नश्‍शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
+
नश्‍शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरबशी
शी
+
 
शा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है  
 
शा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है  
  

15:07, 21 जनवरी 2015 का अवतरण

नश्‍शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरबशी
शा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है

हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए‘तिबार-ए-नग़्मा है