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शिवाष्टक

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* [[शिवाष्टक / {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= शिवदीन राम जोशी]]|अनुवादक=|संग्रह=छन्द प्रवाह से }} {{KKCatKavita}}{{KKAshtak}} <poem>पारबती सी सती शिव के, सुत सत्य गणेश धुरन्धर ज्ञानी|कैलाश सा धाम आनंद सदा, शिव सीस जटान में गंग समानी || सब देवन में महादेव बड़े, सुर पूजत हैं जग के सब प्राणी |मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||१|| शिव सुख करो अघ दुःख हरो, प्रभु आस भरो बरदायक ज्ञानी |चारों ही ओर प्रकाश सदा शिव, शंभू दयामय साधू अमानी || तव द्वार से प्रेम अपार मिले, सब सार मिले यह सत्य कहानी | मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||२|| तीनों ही ताप त्रिशूल हरे, शिव बाजत है डमरू अगवानी |भूत पिशाच दोउ कर जोरत, नृत्य करे गुनज्ञान बखानी ||शमशान में ध्यान विभूति चढ़े, शिव तात कथा नहीं कहू से छानी |मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||३||  मृग छाल बागम्बर साजत है, शिव भाल पे चंद अमी बरसानी |अनंत अखंड समाधि लगावत, भक्तन के हित बात ये ठानी ||लहर तरंग में भंग के रंग में, आठों ही याम रहें शिव ध्यानी |मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||४|| रावन शीश उतार धरे, शिव होय प्रसन्न दिये वर ज्ञानी |शिव शंभू कृपा से दसानन को, वह स्वर्ण की लंका मिली रजधानी ||सुन्दरी वाम मिले सुत सुभट, भाई विभीषण अमृत वाणी |मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||५|| भक्तन के सरताज त्रिलोचन, योगी सदा शिव टेक निभानी |संतन के हित में चित में, बल बुद्धि जगावत सुरत सायानी ||दाता प्रताप महा महिमा, जग जानत है यह बात न छानी |मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||६|| भोले कल्याण करो सबका, धन धान सुता सुत दे सुर ज्ञानी |शिव शरण परे की रखे लजिया, भंडार भरे गुण वेद बखानी ||सारद शेष दिनेश मुनीन्द्र, सभी गुण गावत ये गुण ज्ञानी | मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||७|| राम ही राम रटे शिव शंकर, ध्यान धरे निशि वासर ध्यानी |लीला अनंत न अंत मिले, शिव संग रहे जगदंब भवानी ||कर जोरत है शिवदीन निरंतर, शीश झुकावत सज्जन प्राणी |मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||८|| दोहा शिव अष्टक पढि प्रेम से, पाठ करे जो कोय |शिवदीन प्रेम भक्ति मिले, हरी का दर्शन होय ||<poem>
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