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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
म्हारै बखत रा लोग
पढ्योड़ लिख्योड़ा
डेढ़ हुसियार
सब रा सब
बणना चावै
भीड़ सूं न्यारा
करणौ चावै
‘कुछ हटके’
म्हैं बैठ्यो हूँ
एक पुस्तकालय में
इत्तां मिनखां थकै
पसर्योड़ौ है
सचेत सरणाटो।
सब बांच रह्या है
बिना छपीं
सादै कागदां री
किताब्यां
बड़ै मन चित्त सूं।
</poem>