भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"म्हैं अेक कवि / वासु आचार्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वासु आचार्य |संग्रह=सूको ताळ / वास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:23, 26 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण

मनै-घणौ बोलणौ
नीं आवै
अर नीं आवै
फुरून्यां फुलावणौ

पिण्डाऊ भासा
पिण्डतां नै‘ई सोवै
चावै बै सबद
टीपणै रा हुवौ
चावै माईक रै पड़दा नै
फाड़ण आळा

म्हैं अेक कवि
खाली कवि
करतौ रैऊ
आखरां सूं
फौरी फौरी छेड़छाड़
अर माण्डतौ रैवूं
बा भासा
जकी मनै
नकली उजास री
चादर मांय-लिपट्यौड़ै अंधारै रै
करै आमी-सामी
असली उजास रै
आसै-पासै

जकी ‘ढूंढा’ री
मरती जाय रैई जड़ा नै
करणी चावै हरी भरी
ठा नीं कद
छैकड कद-
ससवी हुसी
जी री भासा
जी लागणी भासा ?