भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"थारै पछै (7) / वासु आचार्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वासु आचार्य |संग्रह=सूको ताळ / वास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:31, 26 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण

छींट छींट हुयग्या
बै सिगळै
रंग बिरंगा-रंगा रा
चितराम

जका म्हारै मन रै
मान सरोवर
लै‘रा‘वता हा-लै‘र लै‘र
हंस बण

अबै नी तो रैयौ है
मन मांय-मान सरोवर
अर नीं ई हंस

जद सूं हंसा उड़ग्या-
कागा चींथै है-
जीवतै जागतै मुड़दै नै
मांय रा मांय
म्है ताकू निजर पसार
हाथ ऊंचा कर
सिगळौ अकास

कठै‘ई कोई खूणै
दीख जावै-झबकै थारौ मुळकणौ
आ म्हारी लालसा-जाणू हूं-
लालसा‘ई है जी री
ओ म्हारो बगत-बगत नंी
खाली लालसा‘ई है-

थारै पछै
थारै पछै