भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नीं हुय सकू अवलियौ / वासु आचार्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वासु आचार्य |संग्रह=सूको ताळ / वास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:32, 26 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण

घणै कुरैदणै सूं भी
नी मिलै‘बा ठौड़

संवैदणा रै
अनुभव जगत मांय
छाती ठोक‘र
की कैईज सकै
या फैर मुळकतै मुळकतै
हर छिन्न नै सैईज सकै

सिगळी री सिगळी जमीन
अर आभो
भैळो हुय जावै है
हौळे हौळै चालती के‘ई लै‘र ज्यूं

अर बोई छिन्न
क्यूं फैर-फूटणो चावै
कैई ज्वालामुखी दांई
आग‘ई आग
लावौ‘ई लावौ
कादौ‘ई कादौ

आखर-साच क्या है ?

ठंडी मधरी
हौळै-हौळै चालती लै‘र
या उबळतौ लावौ
म्हैं-दौनू‘ई दसावां मांय
न्हांसण लागू
हांफतौ हांफतौ
परसीणौ परसीणौ हुयौ

चावूं-धूड़ रै कण दांई
पून मांय उड़णौ
सब सूं अळगौ
सबसूं न्यारौ हळकौ फुदक हुय
कैई अवळिये ज्यूं

पण अैड़ौ कीं नीं हुवै

म्हैं खुद सूं‘ई
तिसळण लागू
आय पडू-पाछौ
सागी डांडा सागी कवाड़ां री चकरी मांय

म्हैं - नीं हुय सकू अवाळियौ