भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तद‘ई तो / वासु आचार्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRachna}} <poem> समधा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=वासु आचार्य |
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
13:06, 28 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण
समधां रै
घटाटोप मांय
अमूजती आत्मा
खाली सूकै ताळ री
भुरभुरावती माटी मांय
सूंघणौ चावै दबियौड़ी
बा सौंधी सौंधी गंध
जद कि दूर दूर तांई
लाम्बै चवड़ै फैल्योड़ै
मरूथळ ज्यूं आभै मांय
बादळ रो
कोई फवौ तक नीं दीखै
अर नीं ई पंखैरूआं री
भैळी लैण्यां
जाणू हूं
सुकावट‘ई सुकावट है
च्यांरूमैर
तद‘ई तो
सौंधी सौंधी गन्ध
भुरभुरावती माटी मांय
सूंघण री म्हारी लालसा
क्या अकैकारी है ?