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"जीवन में खरे नहीं / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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कोल्हू के बैल की तरह
 
कोल्हू के बैल की तरह
 
घूमते रहे हैं जो एक ही जगह
 
घूमते रहे हैं जो एक ही जगह
            लो करने आ गए जिरह।
+
        लो करने आ गए जिरह।
  
 
खुर वही पुजे हैं
 
खुर वही पुजे हैं
 
तोड़ा है जिसने भी
 
तोड़ा है जिसने भी
 
धरती का बाँझपन
 
धरती का बाँझपन
        और सुम वही हैं
+
          और सुम वही हैं
 
         नाप गए बिना नापी
 
         नाप गए बिना नापी
        धरती का आयतन
+
          धरती का आयतन
  
 
भीतर तक भरे नहीं
 
भीतर तक भरे नहीं
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छूते ही रहे सदा ऊपरी सतह
 
छूते ही रहे सदा ऊपरी सतह
            लो करने आ गए जिरह
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        लो करने आ गए जिरह
 
घूमते रहे हैं जो एक ही जगह
 
घूमते रहे हैं जो एक ही जगह
            कोल्हू के बैल की तरह ।         
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        कोल्हू के बैल की तरह ।         
 
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14:47, 16 मार्च 2015 के समय का अवतरण

कोल्हू के बैल की तरह
घूमते रहे हैं जो एक ही जगह
         लो करने आ गए जिरह।

खुर वही पुजे हैं
तोड़ा है जिसने भी
धरती का बाँझपन
           और सुम वही हैं
         नाप गए बिना नापी
          धरती का आयतन

भीतर तक भरे नहीं
ऊपर से हरे नहीं
लालसा ही अर्थ की
जीवन में खरे नहीं

छूते ही रहे सदा ऊपरी सतह
        लो करने आ गए जिरह
घूमते रहे हैं जो एक ही जगह
        कोल्हू के बैल की तरह ।