भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झुलनिया तौ गौरा के सोहै हौ / बघेली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बघेली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatBag...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:29, 20 मार्च 2015 के समय का अवतरण

बघेली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

झुलनिया तो गौरा के सोहै हौ
अरे गौरा के सोहै महराज हो
झुलनिया तो।
झुलनिया तो गौरा के सोहे हो
जेखे दांते बतीसी गोरे गाल हो
झुलनिया तो गौरा के सोहै हो