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"जिनगीकेँ जीव कोना / शम्भुनाथ मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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अछि शरद ऋतुक सौन्दर्य अपन
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जिनगीकेँ जीव कोना बड़का सबाल भेल
नभमे चन्ना चमकय चमचम
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सबतरि विचारवान लोकक अकाल भेल
ई सिङरहार फूलक सुगन्ध
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वन-उपवनकेँ कयलक गमगम
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वर्षाक पानिसँ अस्त-व्यस्त, संतुलित भेल सबतरि जल-थल
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विकृतिये संस्कृति बनि संस्थापित भेल आइ
अछि मुदित चित्त सबहक सबतरि, विहुँसय सरमे विकसित शतदल
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मनुजक सन्तान जेना सबतरि बेहाल भेल
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कुपथ छोड़ि सुपथहिकेँ उचित पंथ कहबा पर
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अपनहि समाङसँ छी अपने हलाल भेल
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मानवकेँ मानव धकिअयबामे लागल अछि
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हाय-हाय लोक लेल लोके अछि काल भेल
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पुरुषाकेँ अरजल धन भसिआयल जाय रहल
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सोझहिँमे डूबि रहल तकरे मलाल भेल
  
क्यौ नाचि रहल दय मधुरताल
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आडम्बर करबालय कर्जा पर कर्जा लय
क्यौ गाबि रहल सुमधुर सरगम
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बाहरसँ खनहन आ भीतर कंगाल भेल
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कहबा लय हाथक थिक मैल पाँच-सात लाख
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आनक धन हड़पयमे लोक फर्दबाल भेल
  
नहुँ नहुँ सिहकय अति सुखद पवन, मृदुशस्य शशि झुकि करय नमन
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नीतिए, अनीति बनल पाप कर्म धर्म बनल
छथि प्रकृति पहिरने रहित वसन, जनजनक भेल प्रमुदित तनमन
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अन्याये न्यायक पद पाबि कय नेहाल भेल
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स्वच्छताक खाल ओढ़ि अगबे बैमान फड़ल
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तेँ ने अछि देश आ समाजक ई हाल भेल
  
सरिता जल निर्मल भरल-पुरल,
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सामाजिक सम-रसता रस विहीन बनल सगर
शीतल बसात लागय अनुपम
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ताहि रसक बीच जाति-पाँतिक देबाल भेल
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पसरल आतंक, बढ़ल द्वेष-भाव अपनहिमे
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छोटछीन बातहुपर बड़का बबाल भेल
  
सब पितृकर्मसँ भय निवृत्त, सब देवकर्म दिस भय प्रवृत्त
+
कोन राग-ताल भेल, पूर्ण रंग-ताल भेल
पूजोपकरण छथि जुटा रहल, मिलिजुलि काली दुर्गा मैया निमित्त
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देशकेर दशा-दिशा ताले बेताल भेल
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मानव सब रूप बदलि दानव बनि लूटि रहल
 +
दाव-पेँचकर बीच बुधुआ दलाल भेल
  
शरदे ऋतुमे रावणक पतन
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त्यागी बलिदानीकेँ आइ बिसरि गेल देश
कयलनि मर्यादा पुरुषोतम
+
अहिंसाक भूमि आब हिंसासँ लाल भेल
 
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चारिम पन बीति रहल चित्त भेल व्यथित अपन
ई शरद कयल भूतल शीतल, खंजन आगमनक थिक ई पल
+
सोचब कतेक आब जीवन जपाल भेल
लतरल ओ चतरल लता गुल्म, नव जीवन पौलक जीव सकल
+
 
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विहुँसैत कुमुदिनी कुमुदक छवि
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पोखरिकेँ बनबय सुन्दरतम
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अछि शरद ऋतुक सौन्दर्य अपन
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नभमे चन्ना चमकय चमचम
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16:23, 23 मार्च 2015 के समय का अवतरण

जिनगीकेँ जीव कोना बड़का सबाल भेल
सबतरि विचारवान लोकक अकाल भेल

विकृतिये संस्कृति बनि संस्थापित भेल आइ
मनुजक सन्तान जेना सबतरि बेहाल भेल
कुपथ छोड़ि सुपथहिकेँ उचित पंथ कहबा पर
अपनहि समाङसँ छी अपने हलाल भेल
मानवकेँ मानव धकिअयबामे लागल अछि
हाय-हाय लोक लेल लोके अछि काल भेल
पुरुषाकेँ अरजल धन भसिआयल जाय रहल
सोझहिँमे डूबि रहल तकरे मलाल भेल

आडम्बर करबालय कर्जा पर कर्जा लय
बाहरसँ खनहन आ भीतर कंगाल भेल
कहबा लय हाथक थिक मैल पाँच-सात लाख
आनक धन हड़पयमे लोक फर्दबाल भेल

नीतिए, अनीति बनल पाप कर्म धर्म बनल
अन्याये न्यायक पद पाबि कय नेहाल भेल
स्वच्छताक खाल ओढ़ि अगबे बैमान फड़ल
तेँ ने अछि देश आ समाजक ई हाल भेल

सामाजिक सम-रसता रस विहीन बनल सगर
ताहि रसक बीच जाति-पाँतिक देबाल भेल
पसरल आतंक, बढ़ल द्वेष-भाव अपनहिमे
छोटछीन बातहुपर बड़का बबाल भेल

कोन राग-ताल भेल, पूर्ण रंग-ताल भेल
देशकेर दशा-दिशा ताले बेताल भेल
मानव सब रूप बदलि दानव बनि लूटि रहल
दाव-पेँचकर बीच बुधुआ दलाल भेल

त्यागी बलिदानीकेँ आइ बिसरि गेल देश
अहिंसाक भूमि आब हिंसासँ लाल भेल
चारिम पन बीति रहल चित्त भेल व्यथित अपन
सोचब कतेक आब जीवन जपाल भेल