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"जवानी जोश के आगार होला / सूर्यदेव पाठक 'पराग'" के अवतरणों में अंतर

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जवानी जोश के आगार होला
लबालब प्रेम-पारावार होला

डगर में पाँव थम-थम के उठाईं
अनेसा बहके के हर बार होला

धरेला ठीक से पतवार सेही
मजे में पार ऊ मँझधार होला

कहाँ ना सत्व-रज-तम साथ में बा
अधिक जब सत्‍व, शुद्ध विचार होला

महाभारत टरी, जब लोभ जाई
बढ़ेला लोभ तब संहार होला

गुलामी के शिकंजा जब कसेला
छिपलका जोश के संचार होला

भले बदनाम कर लीं जानवर के
कहाँ कम आदमी खूंखार होला