भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक दिन ना एक दिन अइबे करी कबहूँ बहार / सूर्यदेव पाठक 'पराग'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग' |संग्रह= }} {{KKCatBho...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

12:48, 30 मार्च 2015 का अवतरण

एक दिन ना एक दिन अइब करी कबहूँ बहार
फूल खिल जाई खुशी के बरसी सावन के फुहार

आ सही झंकार जब वीणा के तारन में कसाव
अतने भर चाहीं कसल टूटे ना ओ कर तन के तार

तेल बाती के बिना कइसे करी दियरी अँजोर
सब रहे तबहूँ बचाईं, ना बुता पावे बयार

फूल खिलते फैल जाई मोह ली मन के सुवास
गुन रही, गुनग्राहियन के कान में कह दी पुकार

छोट भइला से महातम कम ना हो जाई ‘पराग’
ना पिये केहू पियासल जल भरल सागर के खार