भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जर रहल बा गाँव, घर बा जर रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग' |संग्रह= }} {{KKCatBho...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
 
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
+
|संग्रह=भँवर में नाव / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
 
}}
 
}}
 
{{KKCatBhojpuriRachna}}
 
{{KKCatBhojpuriRachna}}

13:42, 30 मार्च 2015 के समय का अवतरण

जर रहल बा गाँव, घर बा जर रहल
लोग बम-बारूद से बा मर रहल

शान से इन्सान अइँठत मोंछ बा
केहू अतियाचार से ना डर रहल

छोड-बड़ आ जाति के झगड़ा बढ़ल
आदमी के चैन बाटे हर रहल

हिल रहल विश्‍वास मन के पात अस
भूत भय के राह चलते धर रहल

आज कुछ आ काल्ह कुछ दोसर भइल
लोग वादा कर के बाटे टर रहल

फूल अब का खिल सकी मधुमास में
फेंड़ पर के पात तक बा झर रहल

का फसल के आस तू करबऽ ‘पराग’
केहू बोवल केहू बाटे चर रहल