"करूणा-कुंज / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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मुख पर श्रम-सीकर का भी उन्मेष है | मुख पर श्रम-सीकर का भी उन्मेष है | ||
− | भारी भोझा लाद लिया न | + | भारी भोझा लाद लिया न सँभार है |
छल छालों से पैर छिले न उबार है | छल छालों से पैर छिले न उबार है | ||
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कुसुम-वाहना प्रकृति मनोज्ञ वसन्त है | कुसुम-वाहना प्रकृति मनोज्ञ वसन्त है | ||
मलयज मारूत प्रेम-भरा छविवन्त है | मलयज मारूत प्रेम-भरा छविवन्त है | ||
− | खिली कुसुम की कली | + | खिली कुसुम की कली अलीगण घूमते |
मद-माते पिक-पुंज मंज्जरी चूमते | मद-माते पिक-पुंज मंज्जरी चूमते | ||
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तुम तो अविरत चले जा रहे हो कहीं | तुम तो अविरत चले जा रहे हो कहीं | ||
− | तुम्हें सुघर से | + | तुम्हें सुघर से दृश्य दिखाते हैं नहीं |
शरद-शर्वरी शिशिर-प्रभंजन-वेग में | शरद-शर्वरी शिशिर-प्रभंजन-वेग में | ||
चलना है अविराम तुम्हें उद्वेग में | चलना है अविराम तुम्हें उद्वेग में | ||
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त्रस्त पथिक, देखो करूणा विश्वेश की | त्रस्त पथिक, देखो करूणा विश्वेश की | ||
खड़ी दिलाती तुम्हें याद हृदयेश की | खड़ी दिलाती तुम्हें याद हृदयेश की | ||
− | + | शाीतातप की भीति सता सकती नही | |
− | दुख तो उसका पता न पा सकता | + | दुख तो उसका पता न पा सकता कहीं |
भ्रान्त शान्त पथिकों का जीवन-मूल है | भ्रान्त शान्त पथिकों का जीवन-मूल है | ||
इसका ध्यान मिटा देना सब भूल है | इसका ध्यान मिटा देना सब भूल है | ||
− | कुसुमित मधुमय जहाँ सुखद | + | कुसुमित मधुमय जहाँ सुखद अलिपुंज है |
शान्त-हेतु वह देखो ‘करूणा-कुंज है | शान्त-हेतु वह देखो ‘करूणा-कुंज है | ||
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12:42, 2 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
क्लान्त हुआ सब अंग शिथिल क्यों वेष है
मुख पर श्रम-सीकर का भी उन्मेष है
भारी भोझा लाद लिया न सँभार है
छल छालों से पैर छिले न उबार है
चले जा रहे वेग भरे किस ओर को
मृग-मरीचिका तुुम्हें दिखाती छोर को
किन्तु नहीं हे पथिक ! वह जल है नहीं
बालू के मैदान सिवा कुछ है नहीं
ज्वाला का यह ताप तुम्हें झुलसा रहा
मनो मुकुल मकरन्द-भरा कुम्हला रहा
उसके सिंचन-हेतु न यह उद्योग है
व्यर्थ परिश्रम करो न यह उपयोग है
कुसुम-वाहना प्रकृति मनोज्ञ वसन्त है
मलयज मारूत प्रेम-भरा छविवन्त है
खिली कुसुम की कली अलीगण घूमते
मद-माते पिक-पुंज मंज्जरी चूमते
किन्तु तुम्हें विश्राम कहाँ है नाम को
केवल मोहित हुए लोभ से काम को
ग्रीष्मासन है बिछा तुम्हारे हृदय में
कुसुमाकर पर ध्यान नहीं इस समय में
अविरल आँसू-धार नेत्र से बह रहे
वर्षा-ऋतु का रूप नहीं तुम लख रहे
मेघ-वाहना पवन-मार्ग में विचरती
सुन्दर श्रम-लव-विन्दु धरा को वितरती
तुम तो अविरत चले जा रहे हो कहीं
तुम्हें सुघर से दृश्य दिखाते हैं नहीं
शरद-शर्वरी शिशिर-प्रभंजन-वेग में
चलना है अविराम तुम्हें उद्वेग में
भ्रम-कुहेलिका से दृग-पथ भी भ्रान्त है
है पग-पग पर ठोकर, फिर नहि शान्त है
व्याकुल होकर, चलते हो क्यो मार्ग में
छाया क्या है नहीं कही इस मार्ग में
त्रस्त पथिक, देखो करूणा विश्वेश की
खड़ी दिलाती तुम्हें याद हृदयेश की
शाीतातप की भीति सता सकती नही
दुख तो उसका पता न पा सकता कहीं
भ्रान्त शान्त पथिकों का जीवन-मूल है
इसका ध्यान मिटा देना सब भूल है
कुसुमित मधुमय जहाँ सुखद अलिपुंज है
शान्त-हेतु वह देखो ‘करूणा-कुंज है