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"बाल-कीड़ा / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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हँसते हो तो हँसो खूब, पर लोट न जाओ
हँसते-हँसते आँखों से मत आश्रु बहाओ
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हँसते-हँसते आँखों से मत अश्रु बहाओ
 
ऐसी क्या है बात ? नहीं जो सुनते मेरी  
 
ऐसी क्या है बात ? नहीं जो सुनते मेरी  
 
मिली तुम्हें क्या कहो कहीं आनन्द की ढेरी
 
मिली तुम्हें क्या कहो कहीं आनन्द की ढेरी
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उपवन के फल-फूल तुम्हारा मार्ग देखते  
 
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काँटे ऊँवे नहीं तुम्हें हैं एक लेखते
 
काँटे ऊँवे नहीं तुम्हें हैं एक लेखते
मिलने को उनसे तुम दौड़े ही जोते हो
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मिलने को उनसे तुम दौड़े ही जाते हो
इसमें कुछ आनन्द अनोखा पा जाते हो
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इसमें कुछ आनन्द अनोखा पा जाते हो
  
 
माली बूढ़ा बकबक किया करता है, कुछ बस नहीं  
 
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जब तुमने कुछ भी हँस दिया, क्रोध आदि सब कुछ नहीं
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राजा हा या रंक एक ही-सा तुमको है  
 
राजा हा या रंक एक ही-सा तुमको है  

16:53, 2 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

हँसते हो तो हँसो खूब, पर लोट न जाओ
हँसते-हँसते आँखों से मत अश्रु बहाओ
ऐसी क्या है बात ? नहीं जो सुनते मेरी
मिली तुम्हें क्या कहो कहीं आनन्द की ढेरी

ये गोरे-गोरे गाल है लाल हुए अति मोद से
क्या क्रीड़ा करता है हृदय किसी स्वतंत्र विनोद से

उपवन के फल-फूल तुम्हारा मार्ग देखते
काँटे ऊँवे नहीं तुम्हें हैं एक लेखते
मिलने को उनसे तुम दौड़े ही जाते हो
इसमें कुछ आनन्द अनोखा पा जाते हो

माली बूढ़ा बकबक किया करता है, कुछ बस नहीं
जब तुमने कुछ भी हँस दिया, क्रोध आदि सब कुछ नहीं
 
राजा हा या रंक एक ही-सा तुमको है
स्नेह-योग्य है वही हँसता जो तुमको है
मान तुम्हारा महामानियो से भारी है
मनोनीत जो बात हुई तो सुखकारी है

वृद्धों की गल्पकथा कभी होती जब प्रारम्भ है
कुछ सुना नहीं तो भी तुरत हँसने का आरम्भ है