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कोकिल / जयशंकर प्रसाद

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नये कमल-दल-बीच गया किंजल्क-पुंज है
नया तुम्हारा राग मनोहर श्रुति सुखकारी
नया कण्ठ कमनीय, वाणि वीणा त्र-अनुकारी
यद्यपि है अज्ञात ध्वनि कोकिल ! तेरी मोदमय
तो भी मन सुनकर हुआ षीतलशीतल, षांतशांत, विनोदमय
विकसे नवल रसाल मिले मदमाते मधुकर
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