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"मोहन / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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12:26, 3 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

अपने सुप्रेम-रस का प्याला पिला दे मोहन
तेरे में अपने को हम जिसमें भुला दें मोहन
निज रूप-माधुरी की चसकी लगा दे मुझको
मुँह से कभी न छूटे ऐसी छका दे मोहन
सौन्दर्य विश्व-भर में फैला हुआ जो तेरा
एकत्र करके उसको मन में दिखा दे मोहन
अस्तित्व रह न जाये हमको हमारे ही में
हमको बना दे तू अब, ऐसी प्रभा दे मोहन
जलकर नहीं है हटते जो रूप की शीखा से
हमको, पतंग अपना ऐसा बना दे मोहन
मेरा हृदय-गगन भी तब राग में रँगा हो
ऐसी उषा की लाली अब तो दिखा दे मोहन
आनन्द से पुलककर हों रोम-रोम भीने
संगीत वह सुधामय अपना सुना दे मोहन