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हम थिकहुँ योगी!
सहस्र-दल कमलक मंथन पश्चात
हम पबैत छी अमृत
अमृत मात्र अछि हमर जीवनक केन्द्र!
संबंधक शून्य क्षेत्र
जे नहि अबैत अछि
मर्यादा वा अमर्यादाक परिधि मे
हम एहि दुनूक परिधि सँ छी फराक,
बीचक मानवहीन सीमारेखा पर
हमरहि योग अछि सत्य।
हम ने छी सन्यासी ने गृहस्थ;
हम छी मात्र योगी
मंथन हमर कर्म,
अमृत हमर जीवन।