भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक मित्र / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:06, 5 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
दादा ने है बन्दर पाला,|
है वह बन्दर बड़ा निराला।|
दरवाजे पर बैठा रहता,
कुछ भी नहीं किसी से कहता।
शायद सोचा करता मन में-
पड़ा हुआ हूँ मैं बंधन में।
इससे भूल गया सब छल बल,
खा लेता जीने को केवल।
मैं उस राह सदा जाता हूँ,
नित चुमकार उसे आता हूँ।
जिससे वह खुश हो सोचे रे,
अब भी एक मित्र है मेरे।