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16:23, 5 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
शक्ति राम की है मुझमें भी,
घूमे जो निर्जन वन में।
भक्ति श्याम की है मुझमें भी,
सदा हँसे जो जीवन में।
जिसकी प्रेम दया की शिक्षा,
से जागी वसुधा सारी।
गौतम के उस उच्च ह्रदय का,
मैं हूँ पूरा अधिकारी।
पर्वत, वन, बिजली, बादल, नद,
सूरज ,चाँद और तारे।
बचपन से ही देखा मैंने,
हैं मेरे साथी सारे।
जहाँ कहो मैं वहां चलूँगा,
जरा नहीं डर सकता हूँ।
इक्छा करने की देरी है,
मैं सब कुछ कर सकता हूँ।