भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आम / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:55, 5 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

घर में मेरे आये आम,
मजे बड़े ले आये आम।
मुन्नू, चुन्नू, चंपा, चंदो,
सबने मिल कर खाये आम।
बिन दातों की मुन्नी से हैं,
उठते नहीं उठाये आम।
गली गली में छाये आम,
मजे बड़े ले आये आम।
आंधी आई टूटे आम,
लड़कों ने मिल लूटे आम।
देखो जरा संभल कर चूसो,
कहीं न दब कर फूटे आम।
ओ हो! कपड़े रंगे तमाम,
मजे बड़े ले आये आम।