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− | बाँहें लिहाफ़ में मुझे भी छिपा लेता है | + | बाँहें लिहाफ़ में मुझे भी छिपा लेता है |
− | इस तरह हर रात ढले ख़याल करता है वो मेरा | + | इस तरह हर रात ढले ख़याल करता है वो मेरा । |
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जब शब धीरे-धीरे अलसाई-सी उठती है | जब शब धीरे-धीरे अलसाई-सी उठती है | ||
मैं चलती हूँ | मैं चलती हूँ | ||
ख़ुशियों के लगा कर पंख | ख़ुशियों के लगा कर पंख | ||
मेरी साड़ी का दामन थामे | मेरी साड़ी का दामन थामे | ||
− | तब मेरा हमराह होता है | + | तब मेरा हमराह होता है । |
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फिर में देखती हूँ उसे सवाली आँखों से | फिर में देखती हूँ उसे सवाली आँखों से | ||
वो जवाब में अनकहा इजहार करता है | वो जवाब में अनकहा इजहार करता है | ||
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इन्द्रधनुषी बाँहों में समेट कर मुझे | इन्द्रधनुषी बाँहों में समेट कर मुझे | ||
पकड़ा कर ख़ुशियों के पल | पकड़ा कर ख़ुशियों के पल | ||
− | खुद नीलकण्ठ हो जाता है | + | खुद नीलकण्ठ हो जाता है । |
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देखती हूँ चकित आँखों से | देखती हूँ चकित आँखों से | ||
पाती नहीं उसको आस-पास कही | पाती नहीं उसको आस-पास कही |
14:55, 7 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
गहराती रातों में वो ज़ेहन में मेरे
रेशमी ख़याल-सा तैरता आता है
रूह के जिस्म में मोहब्बत की चादर ओढ़े
बाँहें लिहाफ़ में मुझे भी छिपा लेता है
इस तरह हर रात ढले ख़याल करता है वो मेरा ।
जब शब धीरे-धीरे अलसाई-सी उठती है
मैं चलती हूँ
ख़ुशियों के लगा कर पंख
मेरी साड़ी का दामन थामे
तब मेरा हमराह होता है ।
फिर में देखती हूँ उसे सवाली आँखों से
वो जवाब में अनकहा इजहार करता है
मैं बहुत कुछ कहती हूँ मन ही मन
शाइस्तगी से वो सब सुनता है
इन्द्रधनुषी बाँहों में समेट कर मुझे
पकड़ा कर ख़ुशियों के पल
खुद नीलकण्ठ हो जाता है ।
देखती हूँ चकित आँखों से
पाती नहीं उसको आस-पास कही
समझ जाती हूँ
मेरी आँखों में इक ख़्वाब था ।