"सच कहूँ तेरे बिना / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha  (चर्चा | योगदान)  (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शार्दुला नोगजा }} <poem> सच कहूँ तेरे बिना ठंडे तवे स...)  | 
				छो  | 
				||
| पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
आस जैसे सीढ़ियों पे बैठ जाए थक पुजारिन  | आस जैसे सीढ़ियों पे बैठ जाए थक पुजारिन  | ||
| − | और मंदिर में   | + | और मंदिर में रहे ज्यों देव का श्रृंगार बासी  | 
बिजलियाँ बन कर गिरें दुस्वप्न उस ही शाख पे बस  | बिजलियाँ बन कर गिरें दुस्वप्न उस ही शाख पे बस  | ||
घोंसला जिस पे बना बैठी हो मेरी पीर प्यासी !  | घोंसला जिस पे बना बैठी हो मेरी पीर प्यासी !  | ||
19:07, 8 अप्रैल 2015 का अवतरण
 सच कहूँ तेरे बिना ठंडे तवे सी ज़िंदगानी
और मन भूखा सा बच्चा एक रोटी ढूँढता है
चाँद आधा, आधे नंबर पा के रोती एक बच्ची
और सूरज अनमने टीचर सा खुल के ऊंघता है !
आस जैसे सीढ़ियों पे बैठ जाए थक पुजारिन
और मंदिर में रहे ज्यों देव का श्रृंगार बासी
बिजलियाँ बन कर गिरें दुस्वप्न उस ही शाख पे बस
घोंसला जिस पे बना बैठी हो मेरी पीर प्यासी !
सच कहूँ तेरे बिना !
पूछती संभावना की बुढ़िया आपत योजनायें
कह गया था तीन दिन की, तीन युग अब बीतते हैं
नाम और तेरा पता जिस पर लिखा खोया वो पुर्जा
कोष मन के और तन के हाय छिन छिन रीतते हैं !
सच कहूँ तेरे बिना मेरी नहीं कोई कहानी
गीत मेरे जैसे ऊंचे जा लगे हों आम कोई
तोड़ते हैं जिनको बच्चे पत्थरों की चोट दे कर
और फिर देना ना चाहे उनका सच्चा दाम कोई !
सच कहूँ तेरे बिना !
	
	