भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वसन्त गीत / नरेश कुमार विकल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश कुमार विकल |संग्रह=अरिपन / नर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:00, 23 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

ससरल गगन सँ मगन भेल चन्दा
पसरल नभ मे विहान यौ।
फूलक पात पर घात लगौने
भमरा करय मधुपान यौ।

सींथ सम्हारल मूगां आ मोती सँ
पाल बनौने साड़ी आ धोती सँ
खूँट खोंसि आँचरक ग्रामीणबाला
करैछ नर्त्तन मन गान यौ।

सिहकि बसात चलल चहुँ दिस
हिलमिल गावय गहूमक शीश
विहुँसय मन सुमन देखि, धरतीक सोहाग
अग जग मे जागल परान यौ।

चम-चम चमकै बिन्दिया लगौने
कजरा लगौने आ गजरा सजौने
बाँटैछ कुंकुम घुमि-घुमि घर मे
पसरल अधर मुस्कान यौ।