भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"थूं सौरम है कै पुहुप कै बिछड़्योड़ी पांखड़ी / मालचंद तिवाड़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मालचंद तिवाड़ी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:15, 30 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
क्यूं करै आज मन
लिख दूं थनै फकत अे आखर
हुय जाऊं गूंगो
चीकणी ढलाणां तीसळूं-
किणी पुहुप री पांखड़ियां मे।
अलोप हुय जाऊं
सौरम रै देस।
नीं जाणूं
थूं सौरम है कै पुहुप कै बिछड़्योड़ी पांखड़ी।
पूठ लारै जठै हाथ नीं पूगै
उण ठौड़ जम्योड़ी पीड़ री गळाई
म्हैं थनै सोधूं आखी धरती पर।
अेकमेक हुय जावै धरती अर म्हारी पूठ
कांई कीं नीं लागैला छेवट म्हारै हाथ ?
पीड़ रै अदीठ गांव री पटराणी थूं
म्हनै नीं, म्हारै इण छे’लै आखर नै तौ दीजै परस
नींतर औ ई म्हारै दांई
भटकेलो आखी उमर अडोळो।