भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मून / निशान्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह=धंवर पछै सूरज / नि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:24, 4 मई 2015 के समय का अवतरण

म्हे दो-तीन
सगा-समधीं
कई दिनां सूं
मिल्या हा

थोड़ी देर री
बंतळ पछै
म्हारै बिचाळै
पसरग्यो मून
जको लागै हो खारौ
पण तोड़ी ज्यौ नीं म्हारै सूं

कै तो म्हारै
गमां रा भारा हा
मोटा
अर हुय चुक्यौ हो म्हानै
बगत री कमी रौ
अहसास

अर कै म्हे
सोच लियौ-
फालतू है
खुलणो।