भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काळ / निशान्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह=धंवर पछै सूरज / नि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:55, 4 मई 2015 के समय का अवतरण
पिछलै साल
कम लागी-
निमां रै निमोळ्यां
कीकरां रै पातड़ियां
काकड़िया-मतिरियां
री नास्त हुगी
अबकाळै कई दिनां सूं
देखूं-
लागण नी लागर्यो
कठैई कोई
सैत-माखियां रो छातो
कांई ईयां ईं
गायब हुवंती जासी
आपणै बिचाळै सूं
आच्छी अर
मीठी चीजां।