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"तुम (हाइकु) / अशोक कुमार शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

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गुनगुनी धूप सी  
 
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माह पूस की  
 
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तुम हंसे तो
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चमकी बिजली सी
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बादर झरे
 
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17:00, 4 मई 2015 का अवतरण

 (1)
तुम आये तो
महकी फुलवारी
मायूसी हारी
(2)
हरारत है
आलिंगन तुम्हारा
पिघला तन
(3)
तेरी आहट
गुनगुनी धूप सी
माह पूस की
(4)
तुम हंसे तो
चमकी बिजली सी
बादर झरे