भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डागदर रो घर / निशान्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:42, 9 मई 2015 के समय का अवतरण

अेक डागदर रै घरै म्हे
दिनूगै सात-आठ बजी
नांनियो दिखावण गया
बारै भारी काढती बाई
म्हानै बतायो कै
सा‘ब न्हावै
गरदै स्यूं बचण सारू
म्हे कमरै मांय आय‘र बैठ्या
बठै अंधेरो हो
खिड़क्यां-रोशनदानां मांय
ठूंस्या पड़्या हा अखबार
उडीक मांय
बैठ्यै रै मेरै
खाग्या माच्छर
पड़दै रै लारै आंगण मांय
आवै ही कींनै ई धांसी
सुण‘र
ठणक्यो मेरो माथो ।