भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाजार (1) / निशान्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:20, 9 मई 2015 के समय का अवतरण
आज
दफ्तर स्यूं घरां आय’र
म्हैं खुस हो
कै
आज तो नीं जावणो पड़सी
बाजार
स्यात घरां ई हुयग्यो हो
सब्जी रो जुगाड़
पण
जद थोड़ी ई ताळ मांय
पोती धांसी
तो म्हैं सोच्यो -
ई खातर तो
ल्याणो ई चाईजै च्यवनप्रास
अेक चीज सारू निकळयो तो
और-और चेतै आंवती गई
नतीजो-
थेलो भरीजग्यो अर
जेब रीतगी
कुड़तै-पजामै रो कपड़ो तो
छोड़णो पड़्यो मुला’र
बाणियै नै कैयो
काल खरीदस्यां
विच्यार बणा’र ।