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"हनुमानबाहुक / भाग 2 / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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गोपद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक,
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'''गोपद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक,'''
निपट निसंक परपुर गलबल भो।
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'''निपट निसंक परपुर गलबल भो।'''
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,
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'''द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,'''
कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो॥  
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'''कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो॥'''
संकटसमाज असमंजस भो रामराज,
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'''संकटसमाज असमंजस भो रामराज,'''
काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।
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'''काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।'''
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह,
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'''साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह,'''
लोकपाल पालनको फिर थिर भो॥ 6॥
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'''लोकपाल पालनको फिर थिर भो॥6॥'''
  
भावार्थ - समुद्र को गोखुर के समान करके निडर होकर लंका जैसी (सुरक्षित नगरी को) होलिका के सदृश जला डाला, जिससे पराये (शत्रु के) पुर में गड़बड़ी मच गयी। द्रोण जैसा भारी पर्वत खेल में ही उखाड़ गेंद की तरह उठा लिया, वह कपिराज के लिये बेल फल के समान क्रीड़ा की सामग्री बन गया। रामराज्य मे अपार संकट (लक्ष्मण शक्ति) से असमंजस उत्पनन्नस हुआ (उस समय जिस पराक्रम से) युगसमूह में होने वाला काम पलभर में मुट्ठी में आ गया। तुलसी के स्वामी बड़े साहसी और सामर्थ्यवान है, जिनकी भुजाएँ लोकपालों को पालन करने तथा उन्हें फिर से स्थिरतापूर्वक बसाने का स्थान हुई॥ 6॥
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'''भावार्थ''' - समुद्र को गोखुर के समान करके निडर होकर लंका जैसी (सुरक्षित नगरी को) होलिका के सदृश जला डाला, जिससे पराये (शत्रु के) पुर में गड़बड़ी मच गयी। द्रोण जैसा भारी पर्वत खेल में ही उखाड़ गेंद की तरह उठा लिया, वह कपिराज के लिये बेल फल के समान क्रीड़ा की सामग्री बन गया। रामराज्य मे अपार संकट (लक्ष्मण शक्ति) से असमंजस उत्पनन्नस हुआ (उस समय जिस पराक्रम से) युगसमूह में होने वाला काम पलभर में मुट्ठी में आ गया। तुलसी के स्वामी बड़े साहसी और सामर्थ्यवान है, जिनकी भुजाएँ लोकपालों को पालन करने तथा उन्हें फिर से स्थिरतापूर्वक बसाने का स्थान हुई॥6॥
  
कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ै मानो
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'''कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ै मानो'''
नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।
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'''नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।'''
जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,
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'''जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,'''
महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥  
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'''महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥'''
कुंभकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको
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'''कुंभकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको'''
तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
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'''तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।'''
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-
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'''भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-'''
सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥ 7॥
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'''सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥7॥'''
  
भावार्थ - कच्छप की पीठ में जिनके पाँव गड़हे समुद्र का जल भरने के लिये मानो नाप के पात्र (बर्तन) हुए। राक्षसों का नाश करते समय वह (समुद्र) ही उनके भागकर छिपने का गढ़ हुआ तथा वही बहुत-से बड़े-बड़े मत्स्यों के रहने का स्थान हुआ। तुलसीदास जी कहते हैं - रावण, कुंभकर्ण और मेघनादरूपी ईंधन को जलाने के निमित्त जिनका प्रताप प्रचण्ड अग्नि हुआ। भीष्म पितामह कहते हैं - मेरी समझ में हनुमान जी के समान अत्यन्त बलवान तीनों काल और तीनों लोकों में कोई नहीं हुआ॥ 7॥  
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'''भावार्थ''' - कच्छप की पीठ में जिनके पाँव गड़हे समुद्र का जल भरने के लिये मानो नाप के पात्र (बर्तन) हुए। राक्षसों का नाश करते समय वह (समुद्र) ही उनके भागकर छिपने का गढ़ हुआ तथा वही बहुत-से बड़े-बड़े मत्स्यों के रहने का स्थान हुआ। तुलसीदास जी कहते हैं - रावण, कुंभकर्ण और मेघनादरूपी ईंधन को जलाने के निमित्त जिनका प्रताप प्रचण्ड अग्नि हुआ। भीष्म पितामह कहते हैं - मेरी समझ में हनुमान जी के समान अत्यन्त बलवान तीनों काल और तीनों लोकों में कोई नहीं हुआ॥ 7॥  
  
दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू
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'''दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू'''
अंजनी को नंदन प्रताप भूरि भानु सो।
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'''अंजनी को नंदन प्रताप भूरि भानु सो।'''
सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन,
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'''सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन,'''
सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो॥  
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'''सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो॥'''
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो,
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'''दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो,'''
प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।
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'''प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।'''
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान,
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'''ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान,'''
साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥ 8॥
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'''साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥8॥'''
  
भावार्थ - आप राजा रामचन्द्र जी के दूत, पवनदेव के सुयोग्य पुत्र, अंजनी देवी को आनन्द देने वाले, असंख्य सूर्यों के समान तेजस्वी, सीताजी के शोकनाशक, पाप तथा अवगुण के नष्ट करने वाले, शरणागतों की रक्षा करने वाले और लक्ष्मणजी को प्राणों के समान प्रिय हैं। तुलसीदास के दुस्सह दरिद्ररूपी रावण का नाश करने के लिए आप तीनों में आश्रय रूप प्रकट हुए हैं। अरे लोगो! तुम ज्ञानी, गुणवान, बलवान और सेवा (दूसरों को आराम पहुँचाने) में सजग हनुमान जी के समान चतुर स्वामी को अपने हृदय में बसाओ॥ 8॥  
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'''भावार्थ''' - आप राजा रामचन्द्र जी के दूत, पवनदेव के सुयोग्य पुत्र, अंजनी देवी को आनन्द देने वाले, असंख्य सूर्यों के समान तेजस्वी, सीताजी के शोकनाशक, पाप तथा अवगुण के नष्ट करने वाले, शरणागतों की रक्षा करने वाले और लक्ष्मणजी को प्राणों के समान प्रिय हैं। तुलसीदास के दुस्सह दरिद्ररूपी रावण का नाश करने के लिए आप तीनों में आश्रय रूप प्रकट हुए हैं। अरे लोगो! तुम ज्ञानी, गुणवान, बलवान और सेवा (दूसरों को आराम पहुँचाने) में सजग हनुमान जी के समान चतुर स्वामी को अपने हृदय में बसाओ॥ 8॥  
  
दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल,
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'''दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल,'''
बेद जस गावत बिबुध बंदी छोर को।
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'''बेद जस गावत बिबुध बंदी छोर को।'''
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-बिघटन-पटु,
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'''पाप-ताप-तिमिर तुहिन-बिघटन-पटु,'''
सेवक-सरोरूह सुखद भानु भोरको॥  
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'''सेवक-सरोरूह सुखद भानु भोरको॥'''
लोक-परलोकतें बिसोक सपने न सोक,
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'''लोक-परलोकतें बिसोक सपने न सोक,'''
तुलसीके हिये है भरोसो एक ओरको।
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'''तुलसीके हिये है भरोसो एक ओरको।'''
रामको दुलारो दास बामदेवको निवास,
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'''रामको दुलारो दास बामदेवको निवास,'''
नाम कलि-कामतरू केसरी-किसोर को॥ 9॥
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'''नाम कलि-कामतरू केसरी-किसोर को॥9॥'''
  
भावार्थ - दानवों की सेना को नष्ट करने में जिनका पराक्रम विश्व-विख्यात है, वेद यशगान करते हैं कि देवताओं को कारागार से छुड़ाने वाला पवनकुमार के सिवा दुसरा कौन है ? आप पापान्धकार और कष्टरूपी पाले को घटाने में प्रवीण तथा सेवक-रूपी कमल को प्रसन्न करने के लिए प्रातःकाल के सूर्य के समान हैं। तुलसी के हृदय में एकमात्र हनुमानजी का भरोसा है, स्वप्न में भी लोक और परलोक की चिन्ता नहीं, शोकरहित है। रामचन्द्रजी के दुलारे, शिवस्वरूप (ग्यारह रूद्र में एक) केसरीनन्दन का नाम कलिकाल में कल्पवृक्ष के समान है॥ 9॥
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'''भावार्थ''' - दानवों की सेना को नष्ट करने में जिनका पराक्रम विश्व-विख्यात है, वेद यशगान करते हैं कि देवताओं को कारागार से छुड़ाने वाला पवनकुमार के सिवा दुसरा कौन है ? आप पापान्धकार और कष्टरूपी पाले को घटाने में प्रवीण तथा सेवक-रूपी कमल को प्रसन्न करने के लिए प्रातःकाल के सूर्य के समान हैं। तुलसी के हृदय में एकमात्र हनुमानजी का भरोसा है, स्वप्न में भी लोक और परलोक की चिन्ता नहीं, शोकरहित है। रामचन्द्रजी के दुलारे, शिवस्वरूप (ग्यारह रूद्र में एक) केसरीनन्दन का नाम कलिकाल में कल्पवृक्ष के समान है॥9॥
  
महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत,
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'''महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत,'''
महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको।
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'''महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको।'''
कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन,
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'''कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन,'''
करूना-कलित मन धारमिक धीरको॥  
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'''करूना-कलित मन धारमिक धीरको॥'''
दुर्जन कालसो कराल पाल सज्जन को,
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'''दुर्जन कालसो कराल पाल सज्जन को,'''
सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको।
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'''सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको।'''
सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको,
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'''सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको,'''
सेवक सहायक है साहसी समीर को॥ 10॥
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'''सेवक सहायक है साहसी समीर को॥10॥'''
  
भावार्थ- आप अत्यन्त पराक्रम की हद, अतिशय कराल, बड़े बहादुर और रघुनाथजी द्वारा चुने हुए महा बलवान विख्यात योद्धा हैं। वज्र के समान कठोर शरीरवाले जिनके जोर पड़ने अर्थात बल करने से रणस्थल में कोलाहल मच जाता है, सुन्दर करूणा और धैर्य के स्थान और मन से धर्माचरण करने वाले हैं। दुष्टों के लिए काल के समान भयावने, सज्जनों को पालने वाले और स्मरण करने से तुलसी के दुःख को हरनेवाले हैं। सीताजी को सुख देने वाले, रघुनाथ जी के दुलारे और सेवकों की सहायता करने में पवनकुमार बड़े ही साहसी (हिम्मतवर) हैं॥ 10॥  
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'''भावार्थ'''- आप अत्यन्त पराक्रम की हद, अतिशय कराल, बड़े बहादुर और रघुनाथजी द्वारा चुने हुए महा बलवान विख्यात योद्धा हैं। वज्र के समान कठोर शरीरवाले जिनके जोर पड़ने अर्थात बल करने से रणस्थल में कोलाहल मच जाता है, सुन्दर करूणा और धैर्य के स्थान और मन से धर्माचरण करने वाले हैं। दुष्टों के लिए काल के समान भयावने, सज्जनों को पालने वाले और स्मरण करने से तुलसी के दुःख को हरनेवाले हैं। सीताजी को सुख देने वाले, रघुनाथ जी के दुलारे और सेवकों की सहायता करने में पवनकुमार बड़े ही साहसी (हिम्मतवर) हैं॥ 10॥  
 
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15:49, 15 मई 2015 के समय का अवतरण

गोपद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक,
निपट निसंक परपुर गलबल भो।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,
कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो॥
संकटसमाज असमंजस भो रामराज,
काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह,
लोकपाल पालनको फिर थिर भो॥6॥

भावार्थ - समुद्र को गोखुर के समान करके निडर होकर लंका जैसी (सुरक्षित नगरी को) होलिका के सदृश जला डाला, जिससे पराये (शत्रु के) पुर में गड़बड़ी मच गयी। द्रोण जैसा भारी पर्वत खेल में ही उखाड़ गेंद की तरह उठा लिया, वह कपिराज के लिये बेल फल के समान क्रीड़ा की सामग्री बन गया। रामराज्य मे अपार संकट (लक्ष्मण शक्ति) से असमंजस उत्पनन्नस हुआ (उस समय जिस पराक्रम से) युगसमूह में होने वाला काम पलभर में मुट्ठी में आ गया। तुलसी के स्वामी बड़े साहसी और सामर्थ्यवान है, जिनकी भुजाएँ लोकपालों को पालन करने तथा उन्हें फिर से स्थिरतापूर्वक बसाने का स्थान हुई॥6॥

कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ै मानो
नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।
जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,
महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥
कुंभकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको
तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-
सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥7॥

भावार्थ - कच्छप की पीठ में जिनके पाँव गड़हे समुद्र का जल भरने के लिये मानो नाप के पात्र (बर्तन) हुए। राक्षसों का नाश करते समय वह (समुद्र) ही उनके भागकर छिपने का गढ़ हुआ तथा वही बहुत-से बड़े-बड़े मत्स्यों के रहने का स्थान हुआ। तुलसीदास जी कहते हैं - रावण, कुंभकर्ण और मेघनादरूपी ईंधन को जलाने के निमित्त जिनका प्रताप प्रचण्ड अग्नि हुआ। भीष्म पितामह कहते हैं - मेरी समझ में हनुमान जी के समान अत्यन्त बलवान तीनों काल और तीनों लोकों में कोई नहीं हुआ॥ 7॥

दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू
अंजनी को नंदन प्रताप भूरि भानु सो।
सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन,
सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो,
प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान,
साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥8॥

भावार्थ - आप राजा रामचन्द्र जी के दूत, पवनदेव के सुयोग्य पुत्र, अंजनी देवी को आनन्द देने वाले, असंख्य सूर्यों के समान तेजस्वी, सीताजी के शोकनाशक, पाप तथा अवगुण के नष्ट करने वाले, शरणागतों की रक्षा करने वाले और लक्ष्मणजी को प्राणों के समान प्रिय हैं। तुलसीदास के दुस्सह दरिद्ररूपी रावण का नाश करने के लिए आप तीनों में आश्रय रूप प्रकट हुए हैं। अरे लोगो! तुम ज्ञानी, गुणवान, बलवान और सेवा (दूसरों को आराम पहुँचाने) में सजग हनुमान जी के समान चतुर स्वामी को अपने हृदय में बसाओ॥ 8॥

दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल,
बेद जस गावत बिबुध बंदी छोर को।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-बिघटन-पटु,
सेवक-सरोरूह सुखद भानु भोरको॥
लोक-परलोकतें बिसोक सपने न सोक,
तुलसीके हिये है भरोसो एक ओरको।
रामको दुलारो दास बामदेवको निवास,
नाम कलि-कामतरू केसरी-किसोर को॥9॥

भावार्थ - दानवों की सेना को नष्ट करने में जिनका पराक्रम विश्व-विख्यात है, वेद यशगान करते हैं कि देवताओं को कारागार से छुड़ाने वाला पवनकुमार के सिवा दुसरा कौन है ? आप पापान्धकार और कष्टरूपी पाले को घटाने में प्रवीण तथा सेवक-रूपी कमल को प्रसन्न करने के लिए प्रातःकाल के सूर्य के समान हैं। तुलसी के हृदय में एकमात्र हनुमानजी का भरोसा है, स्वप्न में भी लोक और परलोक की चिन्ता नहीं, शोकरहित है। रामचन्द्रजी के दुलारे, शिवस्वरूप (ग्यारह रूद्र में एक) केसरीनन्दन का नाम कलिकाल में कल्पवृक्ष के समान है॥9॥

महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत,
महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको।
कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन,
करूना-कलित मन धारमिक धीरको॥
दुर्जन कालसो कराल पाल सज्जन को,
सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको।
सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको,
सेवक सहायक है साहसी समीर को॥10॥

भावार्थ- आप अत्यन्त पराक्रम की हद, अतिशय कराल, बड़े बहादुर और रघुनाथजी द्वारा चुने हुए महा बलवान विख्यात योद्धा हैं। वज्र के समान कठोर शरीरवाले जिनके जोर पड़ने अर्थात बल करने से रणस्थल में कोलाहल मच जाता है, सुन्दर करूणा और धैर्य के स्थान और मन से धर्माचरण करने वाले हैं। दुष्टों के लिए काल के समान भयावने, सज्जनों को पालने वाले और स्मरण करने से तुलसी के दुःख को हरनेवाले हैं। सीताजी को सुख देने वाले, रघुनाथ जी के दुलारे और सेवकों की सहायता करने में पवनकुमार बड़े ही साहसी (हिम्मतवर) हैं॥ 10॥