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"हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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बड़ी अनोखी तेरे पैरहन की ख़ुशबू है | बड़ी अनोखी तेरे पैरहन की ख़ुशबू है | ||
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जो तेरे तन की है वो मेरे मन की खुशबू है | जो तेरे तन की है वो मेरे मन की खुशबू है | ||
11:34, 14 जुलाई 2015 का अवतरण
हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है
गुमान होता है सारे चमन की ख़ुशबू है
तेरा वजूद है मौसम बहार का जैसे
अदा में तेरी, तेरे बाँकपन की ख़ुशबू है
अजीब सहर है ऐ दोस्त तेरे आँचल में
बड़ी अनोखी तेरे पैरहन की ख़ुशबू है
करीब पा के तुझे झूमता है मन मेरा
जो तेरे तन की है वो मेरे मन की खुशबू है
बला की शोख़ है सूरज की एक-एक किरन
पयामे ज़िंदगी हर इक किरन की ख़ुशबू है
गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिंदी से
मेरे मिजाज़ में उस अंजुमन की खुशबू है
वतन से आया है ये ख़त 'रक़ीब' मेरे नाम
हर एक लफ्ज़ में गंगो-जमन की ख़ुशबू है