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लेखक: [[भवानीप्रसाद मिश्र]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र]]|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>वाणी की दीनताअपनी मैं चीन्हता !
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*कहने में अर्थ नहींकहना पर व्यर्थ नहींमिलती है कहने मेंएक तल्लीनता !
वाणी की दीनता<br>आस पास भूलता हूँअपनी मैं चीन्हता जग भर में झूलता हूँसिन्धु के किनारे जैसेकंकर शिशु बीनता !<br><br>
कहने में अर्थ नहीं<br>कंकर निराले नीलेकहना पर व्यर्थ नहीं<br>लाल सतरंगी पीलेमिलती है कहने में<br>शिशु की सजावट अपनीएक तल्लीनता शिशु की प्रवीनता !<br><br>
आस पास भूलता हूँ<br>जग भीतर की आहट भर में झूलता हूँ<br>सिंधु के किनारे जैसे<br>सजती है सजावट परनित्य नया कंकर शिशु बीनता क्रमक्रम की नवीनता !<br><br>
कंकर निराले नीले<br>को चुनने मेंलाल सतरंगी पीले<br>वाणी को बुनने मेंशिशु की सजावट अपनी<br>कोई महत्व नहींशिशु की प्रवीनता कोई नहीं हीनता !<br><br>
भीतर की आहट भर<br>सजती है सजावट पर<br>नित्य नया कंकर क्रम<br>क्रम की नवीनता !<br><br> कंकर को चुनने में<br>वाणी को बुनने में<br>कोई महत्व नहीं<br>कोई नहीं हीनता !<br><br> केवल स्वभाव है<br>चुनने का चाव है<br>जीने की क्षमता है<br>मरने की क्षीणता !<br><br/poem>
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